भाग 1
क्या वास्तव में भूत
प्रेत जैसी कोई चीज़ होती है या फिर यह मानव मात्र के डर से उपजी केवल एक कल्पना
मात्र ही है | सही सही कहना तो असम्भव है, क्यूंकि विज्ञान केवल प्रत्यक्ष को
मानता है जिसे तर्क की कसौटी पर कसा जा सके | परन्तु यह भी एक वास्तविकता है कि
विज्ञान केवल लौकिक जगत की विद्या को पहचानता है| एक चिकित्सक की शरीर के आंतरिक
अंगों सम्बन्धी जानकारी उस जगह पर समाप्त हो जाती है, जो उसके एक्स-रे अथवा स्कैन
में नहीं आती | यह विज्ञान का एक अंतिम चरण है कि परोक्ष नहीं, वह उपस्थित नहीं!
परन्तु आधात्मिकता के स्तर पर शरीर में आत्मा भी है जो किसी भी वैज्ञानिक यंत्र
में नहीं आती, तो क्या उसका अस्तित्व भी नकार दें?
वास्तविकता यह है कि
विज्ञान के ज्ञान की एक सीमा है, वह शरीर के भीतर जो आत्मा है, जब अभी उसके बाए
में ही जानता तो आत्मा के परे जो एक परालौकिक संसार है, उसकी जानकारी के ज्ञान की
अपेक्षा उससे करना बेमानी ही होगा| यह सर्वथा सम्भव है कि अधिसंख्य घटनाएँ,
जिन्हें हम भूत, प्रेत. जिन्न अथवा चुड़ैल से जुड़ा हुआ मान लें वह किसी व्यक्ति
विशेष की किसी मानसिक बिमारी का ही एक प्रकार हो परन्तु ऐसी सभी घटनाओं को एक सिरे
से खारिज कर देना भी अनुचित ही होगा|
काल के जो तीन
महत्वपूर्ण विभाजन किए गए हैं उन्हें मुख्यतय: तीन भागों में विभक्त किया गया है –
भूत, भविष्य और वर्तमान|
मानव का जीवन
वर्तमान है, भले ही वह अज्ञानतावश अपनी सभी योजनायें भविष्य की बनाता है, परन्तु
इस संसार में उसका जीवन केवल वर्तमान तक ही सीमित है | जो साँस अपने भीतर ले जा
पाया वही उसका जीवन है, जैसे ही कोई साँस भीतर जाने से इंकार कर दे उसकी देह्लीला तुरंत
ही समाप्त हो जाती है, ठीक पानी के एक बुलबुले की ही भांति !
जो भूत काल में अटक
गया, वर्तमान में नहीं पहुँच सका उसे ही हम भूत-प्रेत-जिन्न-पिशाच या चुड़ैल कह
देते हैं! हमारे ही जीवन की ही तरह एक समानांतर एक और दुनिया है जिसे परालौकिक या
फिर कहीं आध्यात्मिक विज्ञान भी कहा जाता
है, अंग्रेजी भाषा में इसके लिए शब्द है metaphysics. आप चाहें तो अपनी
सुविधानुसार इसे paranormal या फिर supernatural कोई भी नाम दे सकते हैं, पर
वास्तविकता में यह उन क्षेत्रों पर अनुसन्धान ही है जिन पर अभी तक का विज्ञान मौन
है !
तो साधारण शब्दों
में भूत वह जो अपने भूतकाल में ही रुक गया ! ऐसा क्यूँ हो जाता है यदि इसकी तह तक
जाने का प्रयास करें तो इसके असंख्य कारण हो सकते हैं, परन्तु जो सबसे अधिक जाना
जाता है और जिस पर अधिसंख्य लोगों को विश्वास है, वो है किसी मृतक की असमय और अप्राकृतिक
कारणों से मृत्यु एवं उसके अंतिम संस्कार का पूरे रीतिरिवाजों के साथ न हो पाना!
सभी धर्मों में किसी भी प्राणी के जन्म एवम मृत्यु की रस्मों को लेकर कुछ रीति
रिवाज होते हैं, जिनका ऐसे ही अवसरों पर पालन किया जाना आवश्यक माना जाता है, परन्तु यदि कभी ऐसा न हो पाए तो यह एक
सामान्य धारणा है कि ऐसी आत्मा मुक्त नही हो पाती और वह भूतकाल में ही अटक जाती है
!
दुनिया के प्रत्येक
धर्म तथा साहित्य में इस पर काफी कुछ लिखा गया है, यदि इसी जगत में इसे खारिज़ करने
वाले हैं तो इसे ही सत्य मानने वाले भी बहुतायत में हैं !
यहाँ इसके गुण-दोष
अथवा सत्य-असत्य पर चर्चा न कर मैं केवल इसे व्यक्ति विशेष का अनुभव ही कहूँगा!
यदि किसी को ऐसा कुछ अनुभव हुआ है तो यह उसके लिए परम सत्य है और यदि नहीं हुआ तो
कपोल कल्पना! इसलिए दोनों ही अपनी जगह सही हैं!
चलिए मैं आज आपको परालौकिक घटनाओं पर एक सत्य कथा सुनाता हूँ, जिसका मैं और मेरे मित्र त्यागी
जी स्वयम् में साक्षी रहे हैं। हालाँकि इसमें कुछ नाटकीय परिवर्तन करते हुए इसमें
प्रयुक्त नामों को परिवर्तित कर दिया गया है, ताकि इसका सम्बन्ध किसी व्यक्ति
विशेष से न जोड़ा जा सके, इसके अतिरिक्त इसे मैं कुछ किस्तों में सुनाऊंगा, जिससे आपकी रुचि भी बनी रहे।
यह घटना जो हमारा अपना अनुभव है शुरू होती है गुडगाँव के समीप बसे
एक कस्बे से, जो एनसीआर क्षेत्र में हुई अभूतपूर्व औद्योगिक क्रांति के चलते एक
छोटे-मोटे शहर में ही तब्दील हो चुका है!
हुआ यूँ
कि हमारे एक मित्र(एक काल्पनिक नाम प्रदीप रख लेते हैं, पहचान छिपाने हेतु) के छोटे
भाई( इसे किशन कह देते हैं!) की शादी बहुत ही अच्छे परिवार में सुशील कन्या(राधिका
नाम परिवर्तित) से हुयी। दोनों ही तरफ का घर परिवार अच्छा था, जमीन, जायदाद, खेती-बाड़ी, धन दौलत, पढ़ाई-लिखाई किसी चीज की कोई कमी
नहीं।
दोनों परिवारों में रिश्ते को ले कर समझ बनी और नियत तिथि पर शादी भी हो गई, निर्विघ्न।
सभी खुश थे, सारे काज शांति से निपटे। बहनों, बेटियों को यथासम्भव भेंटे देकर ख़ुशी ख़ुशी विदा किया गया। और लड़का लड़की को कुछ दिन के लिए घूमने के लिए भेज दिया गया।
परन्तु अकस्मात ही, तीसरे दिन ही बेटा-बहू वापिस आ गए, जबकि उनकी वापसी 8-10 दिन बाद की नियत थी। घर में सब हैरान परेशान, पर पूछे कैसे?
दोनों परिवारों में रिश्ते को ले कर समझ बनी और नियत तिथि पर शादी भी हो गई, निर्विघ्न।
सभी खुश थे, सारे काज शांति से निपटे। बहनों, बेटियों को यथासम्भव भेंटे देकर ख़ुशी ख़ुशी विदा किया गया। और लड़का लड़की को कुछ दिन के लिए घूमने के लिए भेज दिया गया।
परन्तु अकस्मात ही, तीसरे दिन ही बेटा-बहू वापिस आ गए, जबकि उनकी वापसी 8-10 दिन बाद की नियत थी। घर में सब हैरान परेशान, पर पूछे कैसे?
माँ(कौशल्या
नाम परिवर्तित) ने बहु से पूछा, उसने गोल मोल सा उत्तर दिया और अपनी अनभिग्यता जाहिर की ।
पिता(सोमनाथ नाम परिवर्तित) ने बड़े बेटे यानि हमारे मित्र प्रदीपसे कहा कि,
"पूछ इससे
कोई समस्या तो नही?" पर वो भी कुछ संकोच में पूछ नही पाया और फिर धीरे-धीरे सब अपने
कार्य-विहार में मगन हो गए।
परन्तु
एक बात जो सबसे छिप नही पा रही थी कि दिन भर सब ठीक रहता है, परन्तु शाम होते होते बहु का
स्वभाव कुछ खिंचा खिंचा सा हो जाता है। बेटा भी अपने बैडरूम में जाने में कोई रुचि
नही रखता। कोशिश करता है कि जितना समय बहाने से बाहर ही रह सके, उस हद तक टालता रहता है। और
सुबह जब सभी उठते हैं तो पहली नज़र में ही बेहद परेशान और घबराया सा होता है। माँ
ने इशारों में अपने पति यानी बेटों के पिता सोमनाथ से कहा, पिता ने बड़े बेटे से कह ही दिया
कि, भई कुछ पता लगा कि माज़रा क्या है?
नई शादी
में कुछ झमेले होते हैं, स्वाभाविक
है परन्तु कुछ दिनों में सब ठीक भी हो जाता है और ऐसा भी नही कि यह शादी कोई जोर
जबरदस्ती से हुयी हो, सभी की
रजामन्दी से हुई है। मसला वाकई गम्भीर था और इस दफ़ा हमारे मित्र प्रदीप ने फैसला
कर ही लिया कि भाई से वह स्वयं और उसकी पत्नी से प्रदीप की पत्नी सुमन(नाम
परिवर्तित) बात करेगी। यदि कहीं कोई चिकित्सा सम्बन्धी समस्या है तो आजकल प्रत्येक
समस्या का हल है, यूँ अंदर
ही अंदर अपने में ही घुटने का क्या औचित्य है?
और फिर
मौका देखते ही सबसे पहले मित्र की पत्नी सुमन ने नव नवेली वधु राधिका को विश्वास
में ले, जानने का भरपूर प्रयास किया, परन्तु कुछ सफलता नही मिली। हाँ,
एक बात जो उसे बार बार खटकी वो थी बहू(देवरानी) के चेहरे के पल पल बदलते रंग तथा
कई बार नज़रें चुराने का प्रयास! जिसकी सम्भवतः एक नई नवेली बहु से कल्पना नही की
जाती। कई बातों पर वो चुप्पी साध गई तो कइयों पर जाने उसने कैसे अपने पर काबू पाया,
यानि उसके भीतर से जो जवाब निकलना चाहता है वो उसको बमुश्किल रोकने का प्रयास कर
रही हो .... कुछ तो है... पर वो कुछ क्या है, यह न तो वो पकड़ पाई और न ही कुछ
अँदाजा ही लगा पाई।
अब बारी मेरे मित्र की थी कि वो इस बारे में अपने भाई से बात करे। गाँव देहात में ऐसे मौके आराम से मिल ही जाते है, अतः उसने एक दिन मौका देख किशन को खेत में किसी काम से भेजा और फिर थोड़ी देर बाद कुछ और काम का बहाना कर, वो भी उसके पीछे चला गया।
अब बारी मेरे मित्र की थी कि वो इस बारे में अपने भाई से बात करे। गाँव देहात में ऐसे मौके आराम से मिल ही जाते है, अतः उसने एक दिन मौका देख किशन को खेत में किसी काम से भेजा और फिर थोड़ी देर बाद कुछ और काम का बहाना कर, वो भी उसके पीछे चला गया।
क्या
मेरा मित्र अपने भाई से इस बाबत कुछ बात कर सका?
क्या उसे कोई ऐसी बात पता चली जो उसने अपने ख्वाबों में भी कल्पना नही की थी?
जानने के लिए इंतज़ार कीजिये.... कल तक
तू जहाँ जहाँ रहेगा... भाग 2
क्या उसे कोई ऐसी बात पता चली जो उसने अपने ख्वाबों में भी कल्पना नही की थी?
जानने के लिए इंतज़ार कीजिये.... कल तक
तू जहाँ जहाँ रहेगा... भाग 2
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