भाग 4
पूर्व प्रकाशित अंक
तू जहाँ जहाँ रहेगा.... भाग 1
तू जहाँ जहाँ रहेगा.... भाग 2
तू जहाँ जहाँ रहेगा.... भाग 3
पूर्व प्रकाशित अंक
तू जहाँ जहाँ रहेगा.... भाग 1
तू जहाँ जहाँ रहेगा.... भाग 2
तू जहाँ जहाँ रहेगा.... भाग 3
ससुर ने बहु के पिता को फोन कर सारी वस्तुस्थिति से अवगत करवाया, कुछ टोह भी लेने का प्रयास किया,
परन्तु उन्होंने किसी भी तरह की जानकारी से साफ़ इंकार कर दिया। स्वयं उनके लिए ही
यह घटना अप्रत्याशित थी। खैर, उन्हे बता दिया गया कि कल सुबह ही उनका बड़ा बेटा तथा बहू, उनकी बेटी को कुछ दिनों के लिए छोड़ने
आ जायेंगे। भेजना क्यों आवश्यक है? यह बिन बताए ही राधिका के पिता
समझ पा रहे थे कि उनकी
बेटी के ऐसी अवस्था में होने पर उसके द्वारा या फिर उसके साथ कुछ
अशोभनीय घटना के
घट जाने से स्थिति और भी विकट हो सकती है। परन्तु उनके लिए सबसे बड़ा संबल और राहत
का कारक यह था कि अभी भी किशन के परिवार को राधिका से कोई व्यक्तिगत शिकायत नही थी
अपितु वह सभी उसकी कुशलता के लिए चिंतित थे। आँखों में उमड़ आये अपने आंसुओं को
असफल प्रयास करते हुए उन्होंने राधिका के ससुर का यह आग्रह भी खुले मन से स्वीकार
कर लिया कि उस पर कुछ जबरदस्ती पूछताछ करने का प्रयास कर, इस बात का कोई दबाव न डाला जाए।
और फिर तब तक उनका परिवार इधर गुड़गाँव में और वह उधर इस बारे में यदि कोई अन्य
जानकारी अपने स्रोत्रों से प्राप्त कर सकें तो तुरन्त एक दूसरे के साथ साझा कर, इस समस्या का कोई हल निकालने का
प्रयत्न करेंगे।
और फिर जैसा कि नियत हुआ था, सुबह ही बड़ा भाई और भाभी, छोटी बहू को उसके मायके छोड़ने
चले गए। छोटी बहू जाना नही चाहती थी, क्यूँकि वह इन सारी गतिविधियों
से अनजान थी, यूँ
अचानक से मायके जाना उसके लिए एकदम अप्रत्याशित था, परन्तु जब उसे यह कहकर समझाया गया कि ससुराल पक्ष की
तरफ यह एक रीत है, अतः उसे
कुछ समय के लिए जाना होगा तो वह कुछ कह न सकी और अंततः इसे मानकर उसे जाना ही पड़ा। हाँ, इस बात से वह कुछ दुखी अवश्य थी
कि उसका पति कई दिनों से उसे मिला नही। आज भी नही आया, जबकि उसे जाना है। कोई बहाना
बना उसे समझाया गया और फिर प्रेम पूर्वक जेठ-जेठानी के साथ विदा कर दिया गया।
बहू के मायके में प्रदीप ने किशन के ससुर और साले को विशवास में ले, उन्हें राजी किया कि अपने तैइं
वो जो भी आवश्यक हो करें, योग्य
डाक्टरों से लेकर झाड़ फूंक तक... क्यूँकि समस्या गम्भीर है। अपने
स्तर पर वह भी प्रयास करेगा... समस्या अब दो व्यक्तियों से बढ़कर दो परिवारों तक
पहुँच चुकी थी, और यह
सराहनीय था कि किशन के ससुर और सालों ने भी अपनी पूरी मदद का आश्वासन दिया।
अभी, प्रदीप और सुमन, राधिका को छोड़ कर किशन की ससुराल से निकले ही
थे कि राधिका की ताई उसके यूँ अचानक आ जाने पर उसकी कुशलक्षेम पूछने के लिए आ गई |
बातों बातों में ही बात चली और ताई ने अपने अनुभव के आधार पर जैसे ही कुछ ऊपरी हवा
का अंदेशा जाहिर किया, राधिका ने तुरंत ही ऐसा हिंसक और गुस्सैल व्यवहार प्रदर्शित
किया जिसकी किसी को भी उससे अपेक्षा नही थी| समझा बुझा कर राधिका को तो वापी उसके
कमरे में भेज दिया गया, परन्तु राधका के व्यवहार में यूँ अचानक ही आये इस हिंसक
परिवर्तन ने घरवालों के सामने एक नया अंदेशा ला दिया|
प्रदीप अभी रास्ते में ही था कि किशन के श्वसुर ने उसको सारी बात
सुना कर इस पर भी विचार करने का आग्रह किया| हैरान-परेशान प्रदीप ने तुरंत त्यागी
जी और मुझे फोन कर कुछ मदद की आस की ! मेरी और त्यागी जी की पहली पसंद मुरादनगर
स्थित दवाखाना था, जिसकी रूहानियत की ख्याति केवल क्षेत्र विशेष तक ही सीमित न
होकर उत्तर भारत के काफी बड़े हिस्से तक है, परन्तु हमारे तमाम प्रयासों के बावजूद
भी हमे कोई फौरी तारीख़ नहीं मिल सकी | समय बहुमूल्य था, अत: हम लोगों ने बिना समय
गवाए अपने अपने सम्पर्कों के माध्यम से साथ ही साथ कोई दूसरा हुनरमंद भी तलाशना शुरू
कर दिया ! हमारी तलाश जल्द ही समाप्त हुई दिल्ली में यमुनापार के एक इलाके में
रहने वाले हाज़ी बाबा कमाल अली( नाम परिवर्तित)के दर पर जाकर ! फोन पर उनसे बात
हुई, मरीज की कोई इस्तेमाल की हुई वस्तु उन्होंने पहले दिखाने को कहा, जिससे कि वह
समझ सकें कि यह उनका मामला है या नही | तुरंत फुरंत ही यह काम किए गए, और फिर जैसे
ही उन्होंने हामी भरते हुए मिलने की इजाजत दी, तुरंत राधिका को बुला लिया गया, और
फिर अगले ही दिन प्रदीप, किशन, राधिका, राधिका की माँ और सास तथा इधर से त्यागी जी
और मैं सुबह दस बजे उनके निवास पर पहुँच गए|
दिल्ली शहर के एक साधारण से मुहल्ले में आम सा ही घर था, बस फर्क
इतना था कि घर में कव्वालियाँ चल रहीं थी, और पूरे घर भर में जलते हुए लुबान तथा अन्य
सुगंधीओं की खुशबू बिखरी हुई थी! दो एक पुरुष और महिलाएं उन कव्वालिओं की तान पर
बेसुध से हुए नाच रहे थे ! चूँकि हमारा समय पहले से ही नियत था, अत: तुरंत ही एक
शागिर्द हमे अंदर की तरफ एक कमरे में ले गया|
एक साधारण सा कमरा, जिसमे जमीन पर कुछ आसन बिछे हुए थे, कमरे में
एक तरफ कुछ आयतें लिखी तस्वीरें और उनके समीप ही जमीन पर बिछे एक आसन पर हाज़ी साहब
विराजमान थे| हमारे अंदर प्रवेश करते ही उन्होंने इशारों से हमे आसन ग्रहण करने का
ईशारा किया| शुरुआती दुआ सलाम के बाद हम सब के लिए चाय भी मँगवाई गई और उन्होंने
पूरे माहौल को यथासम्भव हल्का-फुल्का रखा, हालाँकि तनाव सभी के चेहरे पर स्पष्टता
ही दृष्टिगोचर था!
चाय समाप्त होते ही एक सेवक जैसे
ही कप उठाकर ले गया, उन्होंने राधिका को आदेश दिया कि बिटिया अपनी जगह से उठो और
फोटो के सामने चार अगरबत्ती जला कर नमस्कार करो और यहाँ सामने बैठ जाओ ! तुरंत ही
राधिका अपनी जगह से उठी, और उनके कहे अनुसार चार अगरबतीयां जला कर उनके सामने बैठ
गई | पूरे वातावरण में एक अज़ब सी शान्ति पसरी हुई थी | कुछ पल यूँ ही गुजर गए...
हर गुजरता मिनट एक एक घंटे के समान महसूस हो रहा था| धीरे धीरे अगरबत्ती की गंध पूरे
कमरे में फैलनी शुरू हो गई और फिर अभी तक एकदम शांत बैठी राधिका ने अचानक ही...... जारी
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