Tuesday, 7 June 2016

तेरा भाणा मीठा लागे.... शहीदी गुरु अर्जुन देव जी

तेरा कीआ मीठा लागे... शहीदी दिहाड़ा (दिन/दिवस) गुरु अर्जुन देव जी



जीवन में दो बातें शाश्वत हैं जन्म और मृत्यु! बाकी सब मिथ्या है। जन्म की ख़ुशी तो प्रत्येक समाज में धूमधाम से मनाई ही जाती है, कुछ ऐसे भाग्यशाली भी होते हैं जिनकी जन्मदिन की खुशियाँ उनकी मृत्यु के सैंकड़ों हज़ारों बरस तक भी उनके चाहने वालों द्वारा मनाई जाती हैं।

Wednesday, 13 April 2016

हौं आया दूरों चल के.... वैसाखी का इतिहास, पांवटा साहिब की यात्रा

हौं आया दूरों चल के.... वैसाखी का इतिहास, पांवटा साहिब की यात्रा 


सन् 1685 का समय
एक 20 वर्षीय नौजवान अपने घोड़े पर सवार हिमाचल की वादियों में अपने कुछ विश्वसनीय सहयोगियों के साथ घूम रहा है। हर तरफ प्रकृति के सुंदर नजारे हैं, घना जंगल है, मीलों दूर तक कहीं कोई आबादी नही। सिरमौर से चला साथिओं का यह समूह  घूमते घूमते उसकी सीमाओं तक निकल आया, जिधर यमुना नदी बह रही है।

Monday, 18 January 2016

एक चिड़िया आई 2


बॉयोस्कोप के झरोखे से प्रयास है, छोटे बच्चों के लिए मजेदार कहानियों को लिखने का जो मैंने अपने बचपन में सुनी। इनमे से अधिकतर कहानियों को सुनाने का श्रेय मेरे स्वर्गवासी पिताजी को जाता है, जो अपने आप में ज्ञान का चलता फिरता विश्वकोश थे। हालाँकि सम्भव है कि इनमे से अनेक कहानियाँ आपने भी पहले सुनी हों अथवा कहीं पढ़ी हों। इसका एकमात्र कारण यही है कि वो इन कहानियों के रचयिता नही थे, उन्होंने भी अपने जीवन काल में जो कहानी कहीं पढ़ी या सुनी, उसे फिर हम बच्चों को सुनाई ! उनकी स्मृति को नमन करते हुए पेश है उस संकलन के पिटारे में से इस श्रृंखला की पहली कहानी का दूसरा और अंतिम भाग -

एक चिड़िया आई 1

बॉयोस्कोप के झरोखे से प्रयास है, छोटे बच्चों के लिए मजेदार कहानियों को लिखने का जो मैंने अपने बचपन में सुनी। इनमे से अधिकतर कहानियों को सुनाने का श्रेय मेरे स्वर्गवासी पिताजी को जाता है, जो अपने आप में ज्ञान का चलता फिरता विश्वकोश थे। हालाँकि सम्भव है कि इनमे से अनेक कहानियाँ आपने भी पहले सुनी हों या कहीं पढ़ी हों। इसका एकमात्र कारण यही है कि वो इन कहानियों के रचयिता नही थे, उन्होंने भी अपने जीवन काल में जो कहानी कहीं पढ़ी या सुनी, उसे फिर हम बच्चों को सुनाई ! उनकी स्मृति को नमन करते हुए पेश है उस संकलन के पिटारे में से इस श्रृंखला की पहली कहानी का पहला भाग -

Sunday, 17 January 2016

जनूँ मेरा या राह की दीवार !!!


यह घटना भी देहरादून में ही घटित हुई। देहरादून से कोई 7-8 किमी दूर प्रेमनगर में!

 जैसा कि मैं पहले एक घटना में बता चुका हूँ कि उस क्षेत्र में द्वितीय विश्वयुद्ध के समय युद्धबंदियों को रखने के लिए बैरकेँ बनाई गई थी, जिन्हें बाद में विभाजन के समय आये शरणार्थीयों को अलाट कर दिया गया।

Saturday, 16 January 2016

साहिब-ए-कमाल : गुरु गोबिंद सिंह



वाह परगटियो मरद अंगमड़ा वरियाम अकेला
वाहो वाहो गोबिंद सिंह आपे गुर चेला !!!
                                              ~  भाई गुरदास(दूजा)

अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार 1666 का बरस, सुबह का समाँ, पीर भीखण शाह, जाने किस प्रेरणा के तहत पश्चिम की जगह आज पूरब दिशा की तरफ मुँह कर, अपनी बन्दगी अता कर रहे थे कि उन्हें एक दिव्य(इलाही) रौशनी का आभास हुआ जो आसमाँ से उतर,  बिहार की तरफ पटना शहर में समा गई।

Thursday, 14 January 2016

40 मुक्ते (40 Immortals, 40 mukte, 40 ਚਾਲੀ ਮੁਕਤੇ) और माघी



दुनिया के किसी भी हिस्से में जब कोई भी गुरु नानक नाम लेवा सिख अरदास करता है, उस अरदास में एक शब्द आता है, " चाली मुक्ते ", चाली अर्थात चालीस (40) और मुक्ते, बहुवचन है मुक्त का ! मुक्त संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है liberation यानि जन्म मरण के फेर से आजाद होकर मोक्ष की प्राप्ति (Emancipation!)