बॉयोस्कोप के झरोखे से प्रयास है, छोटे बच्चों के लिए मजेदार कहानियों को लिखने का जो मैंने अपने बचपन में सुनी। इनमे से अधिकतर कहानियों को सुनाने का श्रेय मेरे स्वर्गवासी पिताजी को जाता है, जो अपने आप में ज्ञान का चलता फिरता विश्वकोश थे। हालाँकि सम्भव है कि इनमे से अनेक कहानियाँ आपने भी पहले सुनी हों अथवा कहीं पढ़ी हों। इसका एकमात्र कारण यही है कि वो इन कहानियों के रचयिता नही थे, उन्होंने भी अपने जीवन काल में जो कहानी कहीं पढ़ी या सुनी, उसे फिर हम बच्चों को सुनाई ! उनकी स्मृति को नमन करते हुए पेश है उस संकलन के पिटारे में से इस श्रृंखला की पहली कहानी का दूसरा और अंतिम भाग -
" कितने दाने?" राजा झटपट सिंह भी आखिरकार अपनी उत्सुकता न दबा पाया और पूछ ही बैठा
.........
.........
कनकपुर की सारी प्रजा भी उस सनकी राजा से हमेशा हमेशा के लिए अपना पीछा छूटने पर बेहद खुश थी। उसने भी प्रसन्नतापूर्वक अपने नए राजा का स्वागत किया और नए राजा ने भी कई वर्षों तक सुख पूर्वक बहुत अच्छी तरह से राज्य किया।
2.. एक चिड़िया आई - 2
राजदरबार पहुँचते ही, राजा मनमौजी सिंह ने सभी मंत्रियों और
दरबारियों को कहा, " आज हम अपनी प्रजा की यह हालत देख कर बहुत दुखी हुए हैं कि उनके पास
खाने को अनाज तक नहीं। उनके कमजोर शरीर हम से देखे नहीं गए, अत: हम महाराज मनमौजी सिंह यह
ऐलान करते हैं कि आज से हमारे पूरे राज्य में हर जगह सिर्फ गेहूँ की खेती ही की
जायेगी। राज्य भर में जितनी भी जगह है, हर खाली जगह में तुरन्त गेहूँ की बुआई
कर दी जाए, जिससे
हमारे सभी नागरिक तथा सैनिक तन्दुरुस्त रह सकें और जो कोई, हमारे इस आदेश की
अवहेलना करेगा, उसे 200 कोड़े लगाकर राज्य से निष्कासित
कर दिया जाएगा, साथ ही
उसकी सभी जमीन भी जब्त कर ली जायेगी।"
तुरन्त
ही मुनादी द्वारा राजा का सन्देश गाँव गाँव तक पहुँचा दिया गया। हाल बेहाल और बेबस
जनता ने अब फूलों के पौधे उखाड़े और उनकी जगह गेहूँ बोना शुरू कर दिया।
देखते ही
देखते कुछ ही महीनों में पूरे राज्य में गेहूँ के पौधे लहलहा उठे। हर खेत में गेहूँ, हर वन, उपवन, जंगल, बगीचे में गेहूँ की फसल... और
फिर वो दिन भी आ गए जब इन पौधों से गेहूँ के दाने मिलने शुरू हुए।
राजा झटपट
सिंह ध्यानमग्न हो कहानी को बड़े गौर से सुन रहा था परन्तु अभी तक उसे इस कहानी का
वो सिरा पकड़ में नहीं आया था जिससे उसे पता चल पाता कि यह कहानी किस दिशा में आगे
बढ़ रही है। अतः पूरी रुचि बनाकर वो अपने मसनद पर टेक टिका सुनता जा रहा था, सभी दरबारी और मंत्री भी पूरी
उत्सुकता से इसे सुन भी रहे थे कि देखें इस लड़के के नाक-कान कटेंगे या राजा झटपट
सिंह के !
उधर वो
लड़का लक्ष्मण, अपनी ही
धुन में उस कहानी को आगे बढ़ाता ही जा रहा था......
राजा
साहब, जब उन
पौधों के पकने पर उनमे से गेहूँ के दाने निकलने शुरू हुए तो इतने दाने... इतने
दाने... इतने दाने ....
युवक
अपनी ही रौ में कहता चला जा रहा था, " इतने दाने राजा जी, इतने कि लोगों के खलिहान भर गए, गोदाम भर गए, घरों में भी हर तरफ दाने ही
दाने... जब कहीं और जगह न रही तो सड़कों पर भी किसानों ने गेहूँ के ढेर लगा दिए...
वो ऊँचे ऊँचे ढेर.... कि उनके आगे राजमहल की छत भी नीची पड़ गई, जिधर तक नज़र जाती थी गेहूँ के
दानो के ऊँचे ऊँचे टीले !
राजा
मनमौजी सिंह ने ताज़ी हवा के लिए अपने महल के झरोखे(खिड़की) खुलवाये तो सुगन्धित हवा
के झोंकों की जगह, ताजे गेहूँ के दानो की खुशबू उसके नथुनों में समा गई। परेशान
राजा ने बाहर झाँक कर देखा तो ढंग रह गया, उसकी खिड़की के बाहर तक गेहूँ के टीले
पहुँच चुके थे। गुस्से से भुनभुनाता हुआ राजा मनमौजी सिंह ठण्डी हवा के लिए महल की
छत पर गया तो वहाँ देख कर उसके पसीने छूट गए कि महल की छत के चारों तरफ ऊँचे-ऊँचे
गेहूँ के टीले जमा हो चुके थे।
राजा अब
करे तो क्या करे ? बहुत
कठिन घड़ी आन पड़ी थी ! तुरन्त ही सभी मंत्रियों को बुलाया गया। बहुत मुश्किल से
गेहूँ के टीलों में से जगह बनाते हुए मंत्री और दरबारी महल तक पहुँचे। उनके कपड़े
भी धूल से सन चुके थे और शरीर पर भी जहाँ-तहाँ गेहूँ के दाने चिपके हुए थे।
तुरन्त-फुरन्त फैसला किया गया कि इस गेहूं को सम्भालने के लिए एक विशाल गोदाम
बनवाया जाए और फिर सारी गेहूँ को उसके भीतर रखा जाये।"
उस
नौजवान ने कहना जारी रखा, " और फिर राजा जी, दूर दूर से पकड़ कर मजदूर और कारीगर बुलाये गए ! गोदाम बनना
शुरू हुआ, उस गोदाम
की इत्ती बड़ी बड़ी दीवारे, इत्ती
बड़ी बड़ी दीवारे, इत्ती
बड़ी बड़ी दीवारें, इत्ती.....
" कित्ती बड़ी बड़ी ??" राजा झटपट सिंह का रोमाँच अपने चरम पर
था, इसलिए
अपने को रोक न सका
" इत्ती बड़ी बड़ी की जित्ती आपके नगर की लम्बाई और इत्ती चौड़ी जित्ती
की, जित्ती
की.... आप के राज्य की चौड़ाई और इत्ती ऊँची.... इत्ती ऊँची..... जित्ते ऊँचे बाहर
लगे ऊँचे ऊँचे पेड़ " नवयुवक ने अपने दोनों हाथों को चारो तरफ फैला फैला कर
बताया।
राजा
समेत सभी दरबारी पूरी उत्तेजना से उसकी बातों को सुन रहे थे।
" और फिर उसमे इत्ते बड़े बड़े गेट लगाये गए सैंकड़ो की संख्या में, जिनसे होकर हाथी भी गुजर जाए।
और हर दरवाजे के ऊपर छोटी सी खिड़की। '
"फिर ? " राजा झटपट सिंह की उत्तेजना अब बढ़ती ही जा रही थी
"फिर उस सारी गेहूँ को उसमे भर दिया गया, हफ्तों लग गए सारी गेहूं भरने
में.... और जब वो गोदाम उस गेहूँ से ठसाठस भर गया तो सारे गेट और सारी खिड़कियाँ
बन्द करके ताले लगा दिए गए, और बाहर
सैनिकों का पहरा । पर.... "
इतना कह
कर नवयुवक कुछ देर रुक गया।
"पर ?? पर क्या
आखिर ???" राजा झटपट सिंह का रोमाँच चरम पर पहुँच चुका था
"पर महाराज, सैनिकों
से सभी खिड़कियाँ बन्द करते हुए एक खिड़की का छोटा सा टुकड़ा बन्द करना छूट गया था
!"
"फिर... फिर क्या हुआ ??? बताओ फिर क्या हुआ आगे ?" राजा अब अतिरेक से पगला सा गया, आगे क्या हुआ जानने के लिए
"बस, महाराज...
जैसे ही सभी सिपाही अपनी तरफ से सभी दरवाजे - खिड़कियाँ बन्द कर आराम से एक जगह बैठ
गप्पे मारने लगे, कहीं से
एक चिड़िया आई, उसने इधर
उधर देखा, कोई देख
तो नहीं रहा... अपनी तसल्ली कर उस खुली खिड़की के कोने से अंदर गई और फिर...
" फिर आगे...???" राजा ने पूछा
" फिर महाराज, अपनी
चौंच में उस गेहूँ का एक दाना दबा कर, फुर्र करके उड़ गई !"
"फिर आगे...?" राजा ने जैसे राहत की सांस ली
" फिर, एक और
चिड़िया आई, उसने भी
इधर उधर देखा, चुपके से
उड़कर खिड़की के कोने से अंदर गई और अपनी चौंच में एक दाना भरकर... फुर्र से उड़ गई
!"
" आगे...???" राजा अब कहानी से थोडा सा परेशान होने लगा
" फिर, एक और
चिड़िया आई, उसने भी
इधर उधर देखा, चुपके से
उड़कर खिड़की के कोने से अंदर गई और अपनी चौंच में एक दाना भरकर... फुर्र से उड़ गई
!"
" वो सब तो ठीक है, पर आगे क्या हुआ ??" राजा अब क्रोधित होने लगा
" आगे फिर, एक और
चिड़िया आई, उसने भी
इधर उधर देखा, चुपके से
उड़कर खिड़की के कोने से अंदर गई और अपनी चौंच में एक दाना भरकर... फुर्र से उड़ गई
!"
"भाई तू समझ क्यूँ नही रहा, मुझे यह बता कि फिर इसके बाद क्या हुआ
?" राजा किसी तरह अपनी झुँझलाहट दबा कर बोला
"फिर इसके बाद महाराज, एक और चिड़िया आई, उसने भी इधर उधर देखा, चुपके से उड़कर खिड़की के कोने से
अंदर गई और अपनी चौंच में एक दाना भरकर... फुर्र से उड़ गई !" नवयुवक उसी
उत्साह से बोलता चला जा रहा था
" ठीक है, एक
चिड़िया आई... दाना लेकर उड़ गई, फिर एक और चिड़िया आई, वो भी दाना लेकर उड़ गई.... फिर मुझे
इसके बाद बता कि फिर क्या हुआ ??" राजा ने किसी प्रकार अपने गुस्से पर
काबू पाते हुए पूछा
" जी महाराज, आपने
बिल्कुल सही समझा... ऐसा ही हुआ, उस चिड़िया के उड़ जाने के बाद एक और चिड़िया आई, उसने भी इधर उधर देखा, चुपके से उड़कर खिड़की के कोने से
अंदर गई और अपनी चौंच में एक दाना भरकर... फुर्र से उड़ गई !"
"फुर्र से उड़ गई... फुर्र से उड़ गई.... ठीक है... सारी चिड़िया आई और
फुर्र से उड़ गई? ठीक है ?? अब आगे बताओ कि क्या हुआ ??"
राजा
बदहवाश हुआ जा रहा था
"नही महाराज, ऐसा नही
हुआ था क्यूँकि उस छोटी सी खिड़की का वो नन्हा सा छेद इतना बड़ा नही था कि सारी
चिड़ियाँ एक साथ आकर अपनी चौंच में दाने भर कर एक साथ ही उड़ जाती !" नवयुवक
अपनी कहानी पर ही कायम था, राजा की
बेहाली का उस पर कोई प्रभाव नही पड़ा
"तो ?"
"तो यह महाराज कि उस चिड़िया के उड़ जाने के बाद एक और चिड़िया आई, उसने भी इधर उधर देखा, चुपके से उड़कर खिड़की के कोने से
अंदर गई और अपनी चौंच में एक दाना भरकर... फुर्र से उड़ गई !" नवयुवक का
उत्साह देखते ही बनता था
"अच्छा मान लिया, एक एक कर सारी चिड़िया आई और एक एक दाना ले कर उड़ गई, अब खुश ? अब मुझे यह जानना है कि आगे
क्या हुआ ?" अपने दरबारियों को भी मुँह नीचा कर हँसते हुए देख राजा झटपट सिंह
उकता गया था
" नही
महाराज नही, इतनी
चिड़िया नही थी कि एक ही बार में सारा गेहूँ समाप्त हो जाता !"
"इसलिए पिछली वाली चिड़िया के उड़ जाने के बाद एक और नई चिड़िया आई, उसने भी इधर उधर देखा, चुपके से उड़कर खिड़की के कोने से
अंदर गई और अपनी चौंच में एक दाना भरकर... फुर्र से उड़ गई !"
"फिर इसके आगे ?" राजा ने हथियार डालते हुए पूछा
" इसके आगे फिर एक और नई चिड़िया आई, उसने भी इधर उधर देखा, चुपके से उड़कर खिड़की के कोने से
अंदर गई और अपनी चौंच में एक दाना भरकर... फुर्र से उड़ गई !" नवयुवक अपनी ही
मस्ती में बोलता जा रहा था
"बस, हम अब
सोएंगे, आगे की
कहानी कल सुनेंगे !" राजा झटपट सिंह किसी भी प्रकार से अपनी जान छुड़ाता हुआ
बोला
इसी के
साथ राजा झटपट सिंह के आदेश पर आज की कहानी यहीं अधूरी रोक दी गई !
.........
अगले दिन
राजा झटपट सिंह का मन नही हुआ, पर शर्त थी कहानी सुनने की, सो बैठना ही पड़ा कि शायद आज कहानी कुछ
आगे बड़े।
सभी के
बैठ जाने के बाद उस नवयुवक ने अपनी कहानी आगे बढ़ानी शुरू की....
"तो महाराज, उस
चिड़िया के उड़ जाने के बाद... एक और नई चिड़िया आई, उसने भी इधर उधर देखा, चुपके से उड़कर खिड़की के नन्हे
से कोने से अंदर गई और अपनी चौंच में एक दाना भरकर... फुर्र से उड़ गई !"
राजा का
दिमाग घूम रहा था, परन्तु
यदि वह उस नवयुवक को रोकता तो उसे दो लाख सोने के सिक्कों के साथ साथ अपनी नाक और
कान भी कटवाने पड़ जाते, अतः डर
कर बैठा ही रहा !
इधर वो
नौजवान अपनी ही धुन में सुनाता ही जा रहा था...
"एक और चिड़िया आई, उसने भी इधर उधर देखा, चुपके से उड़कर खिड़की के कोने से अंदर
गई और अपनी चौंच में एक दाना भरकर... फुर्र से उड़ गई !"
दो दिन
बीते, फिर तीन
दिन... इसी तरह एक सप्ताह बीत गया... पर उस नौजवान के कहानी सुनाने के उत्साह में
कोई कमी नही थी। वो अभी भी उसी रोचकता और उमंग के साथ राजा को बता रहा था कि, "
फिर एक
और चिड़िया आई, उसने भी
इधर उधर देखा, चुपके से
उड़कर खिड़की के कोने से अंदर गई और अपनी चौंच में एक दाना भरकर... फुर्र से उड़ गई
!"
राजा झटपट
सिंह की हालत भी कहानी वाले राजा मनमौजी सिंह से कुछ बेहतर नही थी ! राजा झटपट
सिंह के दिमाग में भी यह बात घण्टे की तरह बजने लगी। उठते-बैठते-सोते-जागते उसके
दिमाग में हर समय एक ही बात हथोड़े की तरह बजती.....
"फिर एक और चिड़िया आई, उसने भी इधर उधर देखा, चुपके से उड़कर खिड़की के खुले कोने
से अंदर गई और अपनी चौंच में एक दाना भरकर... फुर्र से उड़ गई !"
राजा झटपट
सिंह अब इस कहानी से बचना चाहता था, पर अपनी नाक और कान भी नही कटवाना
चाहता था, सो मन
मार कर बैठा हुआ था, पर बार
बार यह सुन सुन कर वो पागल हुआ जा रहा था कि एक और चिड़िया आई, उसने भी इधर उधर देखा, चुपके से उड़कर खिड़की के कोने से
अंदर गई और अपनी चौंच में एक दाना भरकर... फुर्र से उड़ गई !
आखिर
उसने गुस्से में पूछ लिया, " अब कहानी आगे कब बढ़ेगी????"
"महाराज जैसे ही सारे गेहूँ के दाने समाप्त हो जाएँगे।" बड़ी ही
सरलता से नौजवान बोला
" तो फिर इस गेंहूँ को जल्दी समाप्त क्यूँ नही करते ?" राजा जल्दी से बोला
"करना तो मैं भी चाहता हूँ महाराज, पर क्या करूँ? इतने छोटे से छेद में से एक बार
में केवल एक ही नन्ही सी चिड़िया ही अंदर जा सकती है, और अपनी चौंच में केवल एक ही दाना ले
कर उड़ सकती है, जबकि अभी
तो लाखो-लाख क्विंटल गेंहूँ के दाने अंदर भरे पड़े हैं।" राजा झटपट सिंह की
हालत देख युवक की आवाज में अब विजेता की सी खनक थी
"तो फिर अब क्या होगा ?" राजा आखिरकार लाचार होकर मरियल सी
आवाज में बोला
"अभी तो इसी तरह से पहले गेंहूँ से भरा, पूरा गोदाम खाली होगा, फिर कहानी आगे बढेगी !"
और फिर
एक नये उत्साह से उस युवक ने कहना जारी रखा, " उस चिड़िया के उड़ जाने के बाद एक और
चिड़िया आई, उसने भी
इधर उधर देखा, चुपके से
उड़कर खिड़की के कोने से अंदर गई और अपनी चौंच में एक दाना भरकर... फुर्र से उड़ गई
!"
"बस, बंद
करो... मैं और नही सुन सकता ! मैं अपनी हार मानता हूँ !" राजा झटपट सिंह समझ
चुका था कि वह बुरी तरह से फ़ंस चुका है, आज सेर का सामना सवा सेर से हो गया है !
दरबारियों
ने समझाने का प्रयास किया, " महाराज, यदि आप
ने हार मान ली तो शर्त के मुताबिक़ नाक-कान कटवाने पड़ेंगे ! अनर्थ हो जाएगा !"
"मैं पागल हो गया हूँ, पागल... यह सुन सुन कर ... फिर एक और
चिड़िया आई, उसने भी
इधर उधर देखा, चुपके से
उड़कर खिड़की के कोने से अंदर गई और अपनी चौंच में एक दाना भरकर... फुर्र से उड़ गई
!" राजा झटपट सिंह ने सचमुच ही जोर जोर से रोना-चिल्लाना शुरू कर दिया, इसके
अलावा अपने बाल नोचने लगा, साथ ही
अपने कपड़े फाड़ने शुरू कर दिए और फिर बेतहाशा इधर-उधर भागते हुए चीख-चिल्ला कर अपने
हाथ पैर पटकने लगा !
कहानी
वाले राजा मनमौजी सिंह की ही तरह वास्तव में ही राजा झटपट सिंह भी पागल हो गया था, उसने इतने लोगों के नाक कान
कटवा दिए थे कि उनकी आहों और बद-दुयाओं ने अब अपना असर दिखा दिया था।
सभी
मंत्रियों ने आपस में सलाह मशविरा किया। राजा को पागलखाने में भरती करवा दिया गया
और उस चतुर नवयुवक लक्ष्मण सिंह को ही इस राज्य का नया राजा बना दिया गया।
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